Thursday, 15 December 2011

Ishrat-e-Qatrah hai darya mein

Ishrat-e-Qatrah hai darya mein fana ho jaana
Dard ka had se guzarna hai dawa ho jaana

The ecstasy of the drop is to become extinct in the ocean
The pain going beyond the limit is its turning into panacea [Translation]

Mirza Ghaalib

1 comment:

  1. ►इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
    दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

    तुझसे क़िस्मत में मेरी सूरत-ए-कुफ़्ल-ए-अबजद
    था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना

    दिल हुआ कशमकशे-चारा-ए-ज़हमत में तमाम
    मिट गया घिसने में इस उक़्दे का वा हो जाना

    अब ज़फ़ा से भी हैं महरूम हम, अल्लाह-अल्लाह!
    इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना

    ज़ोफ़ से गिरियां मुबदृल व-दमे-सर्द हुआ
    बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना

    दिल से मिटना तेरी अन्गुश्ते-हिनाई का ख्याल
    हो गया गोश्त से नाख़ुन का जुदा हो जाना

    है मुझे अब्र-ए-बहारी का बरस कर खुलना
    रोते-रोते ग़म-ए-फ़ुरकत में फ़ना हो जाना

    गर नहीं नकहत-ए-गुल को तेरे कूचे की हवस
    क्यों है गर्द-ए-रह-ए-जौलाने-सबा हो जाना

    ताकि मुझ पर खुले ऐजाज़े-हवाए-सैक़ल
    देख बरसात में सब्ज़ आईने का हो जाना

    बख्शे है जलवा-ए-गुल ज़ौक-ए-तमाशा, गालिब
    चश्म को चाहिए हर रंग में वा हो जाना ◄----------मिर्ज़ा ग़ालिब

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